A Tribute The Glory Of Motherhood
जाने कबसे कौन घड़ी से वो पलकें बिछाये बैठी थी |
हंस लेती थी,
रो लेती थी देहरी पे  टुकटुक ताका करती थी |
अक्सर दुखी जब मै होता, हृदय उसका भी तो रोता था |
मेरे खातिर सब कुछ सहती, वो भूखी भी रह लेती थी |
मुश्किल, कठिन घड़ियों में जब सुबक सुबक मैं रोता था |
समझ पीर मेरे हृदय की मुझे आंचल में ढ़क लेती थी |
मैं उसकी आँखों का  हूँ तारा ऐसा वो सबसे कहती
थी |
जन्मा उसने जब मुझको,  दामन में उसके ढेरों खुशियाँ
आयीं थी |
सच कहता हूँ उसके कारण ही दुनिया रंग बिरंगी मैंने पाई थी |
खाने की जब करता जिद मैं,  वो चुपके से ये कहती थी
|
मान भी जाओ खा
लो लल्ला, अब बंद करो ये नटखटपन |
तब हर एक निवाला रोटी का नेह से मेरे मुह में रखती थी |
माँ तो एक शब्द मात्र है,  पर
उसकी ममता का
कोई मोल नहीं
होंगे कई रिश्ते कहने को अपने,  पर रिश्तों में उसका तोल नहीं |
यूँ तो परिभाषित करना बहुत कठिन है उसके उन बलिदानों को
माँ शब्द से अच्छा बोल नहीं, उस जैसा कोई अनमोल नहीं |
                                     By Kaviraj Ashish Pandit
                                                             Mo: 9718188651
Poetry
on true love of Maa,  माँ, greatness of mother maa,  mother has the greatest virtue for  their 
children ....
 
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